सोमवार, 28 अगस्त 2017

Haii friends में आज फिर आप सब से एक  interesting topic के बारे में बात करना चाहती हुँ।  और वो टॉपिक है सुनना ,Listening हम सब बोलते तो बहुत है ना , पर सुनने का क्या ? कितनी बार हम सब  शांत दिमाग से Open -mind से सिर्फ़  सामने वाले की बात सुनते है।? वो क्या कहना चाहता है।? वो क्या समझाना चाहता है।? हमारे दिमाग मे एक बात होती है। जिसकी हमने conditioning कर रखी होती  है। की यही  बात सही है। और उसी के base पर जब सामने वाला कोई ऐसी बात करता है। जिससे हम असहमत होते है। तो हम उससे सुनना ही नहीं चाहते। हमने पहले ही अपने दिमाग मे इतना फितूर भर रखा होता है। की सामने वाले की बात तो गलत ही है  और इसलिये हम सामने वाले की बात सुनने तक की कोशिश  नहीं करते। कम से कम सामने वाले की बात सुन तो ले। फिर आप सहमत हो याअ सहमत हो, यह आपकी choice है।
     इस बात को में एक उदहारण से समझाने की कोशिश करती हुँ। हर घर मे बच्चे होते है। मान लीजिये छोटा भाई बड़ा भाई ,अब बच्चे है तो झगड़े गए भी किसी ना किसी बात पर ,  बच्चों का काम है। आपस मे झगड़ना और खेलना,अब मान लीजये दो बार कोई ऐसी बात हुई, जिसमे आपको पता चला की बडे भाई की कोई गलती है। छोटे भाई से झगड़ा करने मे.as a  parents आप क्या करेंगे ,बड़े भाई को सम्झाग्ये और कुछ cases मैं डाट देंगे। हो सकता है। बड़ा भाई समझ गया हो आपकी बात,
पर अब यदि तीसरी बार  छोटे भाई ने मजा लेने के लिये बडे भाई की झुठ मूठ शिकायत कर दी। जिसमे बड़ा भाई already दो बार गलत पाया गया है तो आप झट से यह जाने बिना की हो सकता है। छोटा भाई झूठ बोल रहा हो। बडे भाई को दोषी ठहरा देंगे। ऐसा क्यों हुआ ? क्योकि आपके दिमाग मे  एक conditioning हो रखी थी। जिसमे  दो बार बड़ा भाई पहले ही गलती कर चूका है। इस बार भी उसने ही की होगी। आप उसका पक्ष सुनेंगे ही नहीं। और पहले ही आपने सारा गुस्सा उस पर निकाल देंगे। की तुझे पहले भी समझाया है। तुझे तो कोई बात समझ ही नहीं आती। 
          पर यही यदि आप सिर्फ़ एक मिनट रुक कर गुस्सा होने से पहले ,उससे पुछ लेते कि जो तेरा छोटा भाई जो कह रहा है। वो सच है ,तूने फिर से वही गलती की ,उसको उसका पक्ष रखने देते तो शायद समझ में आ जाता की गलतीछोटे भाई की है। छोटा भाई झूठ बोल रहा है।
     आखिर ऐसे मे हुआ क्या ?जो हमारे दिमाग ने conditioning कर रखा था। उस पर ही हमने react कर दिया। अब यह सुनना सिर्फ़ बडे भाई के पक्ष में नहीं जाता ,बल्कि आप के भी पक्ष में जाता।अगर  आपएक minute रुक कर सिर्फ़ उसकी बात सुने होते तो , एक सही निर्णय के करीब पहुंचते। जो आपके लिये भी सही होता। पर हम गलती यही करते है। सुनना जरुरी नहीं समझते।
       एक बात है। जो कई सालो से आपने  अपनी सोच और अपने दिमाग के हिसाब से सही समझते है। सामने वाले ने जहां आप से असहमति की नहीं वही विद्रोह चालू।
   मेरी बस एक request है शांत दिमाग से सिर्फ़ सामने वाले को सुन ले,बिना किसी filter के ,फिर आप  सहमत हो या असहमत कौन मना कर रहा है। कई बार सुनने से  कुछ ऐसा समझ आ जाता है। जो शायद कही हमारे काम आ जाये।
     एक बहुत ही प्रसिद्व इंसान ने यह बात कही थी ,इसे ध्यान से पढ़ना। मे आप से असहमत हो सकता हुँ। पर आप को आप की बात रखने के लिये। मैं अपना सिर तक कटा सकता हु। सोचो कितनी बड़ी बात कहे रहा है।  वो व्यक्ति वो अपनी जान तक दे सकता है आप को आप की बात रखने के  लिये। इसलिये बस सुन ले। यह आपके लिये भी अच्छा है।  
                                                    धन्यवाद्